Sunday 4 October 2015

                                         उत्तराखण्ड के जिले 



१- हरिद्वार

                   २८ दिसम्बर  १९८८ को हरिद्वार का गठन जिले के रूप में किया गया।  १९८८ से लेकर उत्तराखण्ड राज्य के गठन तक यह सहारनपुर मण्डल था , लेकिन राज्य के गठन के बाद इसे गढ़वाल मण्डल  दिया गया। हरिद्वार जिले का क्षेत्रफल २३६० वर्ग किमी है। इस जिले की मुख्य फसलें गेहूं , बाज़रा , गन्ना आदि हैं। इस जिले में लोहा , डोलोमाइट तथा चूना आदि खनिज पदार्थ पाये जाते हैं। 






२ - देहरादून

                        १८१७ में देहरादून को जिला बनाकर मेरठ मण्डल  अंतर्गत सम्मिलित किया गया था , परन्तु १९७५ में इस जिले को गढ़वाल मण्डल में सम्मिलित कर दिया गया। देहरादून जिले का क्षेत्रफल ३०८८ वर्ग किमी है।  इस जिले की मुख्य फसलें बाज़वा , मंडुआ , झंगोरा , उड़द , अरहर , गन्ना , गेहूँ  आदि हैं , तथा यहाँ के प्रमुख फल लीची , आम ,अमरुद , अंगूर , संतरा , स्ट्रॉबेरी आदि हैं।  जिंक ,  डोलोमाइट , चूना पत्थर , जिप्सम , संगमरमर आदि खनिज पदार्थ पाये जाते हैं। यहाँ  प्रमुख संस्थान वन शोध संस्थान , तेल एवं प्राकृतिक  आयोग , इंडियन मिलिट्री अकादमी , इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेट्रोलियम एंड सर्वे ऑफ़ इंडिया हैं।  





३  - उत्तरकाशी  -

                               उत्तरकाशी का प्राचीन नाम बाराह (बाड़ाहाट)  है। २४ फ़रवरी १९६० को इसे जिला बनाया गया।  उत्तरकाशी जिले का कुल क्षेत्रफल ८०१६ वर्ग किमी है। उत्तरकाशी जिले की प्रमुख नदी भागीरथी है। यहां के प्रमुख मंदिर विश्वनाथ मंदिर , परशुराम मंदिर , अन्नपूर्णा तथा दत्तात्रेय मंदिर हैं। 






४ - चमोली

                     चमोली को १९६० में पौड़ी गढ़वाल जनपद से अलग करके नया जनपद बनाया गया। २० जुलाई १९७० को अलकनंदा  बाढ़  के कारण अलकापुरी (चमोली) का अधिकांश भाग बह गया , जिसमें अधिकतर सरकारी भवन थे। अतः मुख्यालय को गोपेश्वर स्थानांतरित कर दिया गया। गोपेश्वर ही चमोली जिले का वर्तमान मुख्यालय है। यहाँ की मुख्य फसलें टमाटर तथा गेहूँ हैं। यहाँ पर जिंक ,ताँबा , लोहा , डोलोमाइट तथा स्वर्ण पाया जाता है। 





५ - रुद्रप्रयाग - 

                        महाभारत काल में इसका नाम रुद्रावत था। १८ सितम्बर १९९७ को टिहरी , पौड़ी गढ़वाल तथा चमोली जिलों के भागों को मिलाकर इसे जिला बनाया गया। यहाँ २०० से अधिक शिव मंदिर हैं। इसका क्षेत्रफल २४३९ वर्ग किमी है। उत्तराखंड के चार धामों में से एक केदारनाथ यहीं स्थित है। 






६ - टिहरी गढ़वाल -

                                   १ अगस्त १९४९ टिहरी गढ़वाल का गठन एक जिले के रूप में किया गया।  इससे पूर्व यह जनपद टिहरी रियासत कहलाता था। इसका क्षेत्रफल ३७९६ वर्ग किमी है। बाँध के निर्माण के फलस्वरूप टिहरी ( जो कि टिहरी बाँध में डूब चूका है ) के विकल्प के रूप में शासन ने पुरानी टिहरी से २४ किमी दक्षिण और ऋषिकेश से  किमी की दूरी पर नई टिहरी नाम से एक नया नगर बसाया और लोगों का पुनर्वास किया। टिहरी जनपद का मुख्यालय कुछ वर्ष तक नरेन्द्रनगर था , परन्तु नयी टिहरी के निर्माण के बाद सभी कार्यालय वहीँ स्थनांततरित कर दिए गए। 







७ - पौड़ी गढ़वाल -

                                १८१५ से १८४० तक ब्रिटिश गढ़वाल की  श्रीनगर। रही १८४० में राजधानी श्रीनगर से पौड़ी स्थानांतरित की गई और पौड़ी को ब्रिटिश गढ़वाल का एक जिला बनाया गया। स्वतंत्रता के बाद १९७० में इसे गढ़वाल मंडल का मुख्यालय बनाया गया। १९६० में इसे काटकर चमोली तथा १९९७ में रुद्रप्रयाग जिले की स्थापना की गयी। 




८ - नैनीताल  -

                         १८८२ में काठगोदाम तक रेल लाइन तथा १८९० में जिला मुख्यालय बन जाने के बाद इस झील नगरी  तेजी से विकास हुआ। सन १९०० में नैनीताल में मल्लीताल में राजभवन या सचिवालय भवन की स्थापना की गई थी , जिसका १९६२ से उत्तर प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में उपयोग किया जाता था। राज्य निर्माण के बाद ९ नवंबर २००० से इसी भवन में उत्तराखंड उच्च न्यायालय  शिफ्ट किया गया। 





९ - अल्मोड़ा - 

                          कुमाऊँ के केंद्र में कोसी और सुयाल नदियों के मध्य स्थित वर्तमान अल्मोड़ा नगर वाले स्थान पर १४वी सदी में कत्यूरियों द्वारा बनाया गया खगमरा का किला था। बाद में चंद राजाओं के समय (१५वी - १६वी सदी ) इसका तेजी से विकास हुआ , क्योंकि १५१२ से १५३० के मध्य भीष्म चंद ने अपनी राजधानी चम्पावत से हटा कर यहीं पर स्थापित कर ली थी , जो कि कल्याण चंद तृतीय के समय (१५६० से आसपास ) बनकर पूर्ण हुआ। १८९२ में इसे जिला मुख्यालय बनाया गया। 




१० - पिथौरागढ़ -

                              अल्मोड़ा के भारत - तिब्बत - नेपाल बॉर्डर वाले काप्ती खंड को अलग करके २४ फ़रवरी १९६० को इस जिले की स्थापना की गयी और इसका मुख्यालय पिथौरागढ़ नगर में स्थापित किया गया।  सितम्बर १९९७ को इसकी तहसील चम्पावत को अलग करके चम्पावत जिला बनाया गया। 




११ - बागेश्वर - 

                           बागेश्वर या बागनाथ , अल्मोड़ा से ९० किमी की दूरी पर मध्य हिमालय की घाटी में स्थित है। इसे उत्तर का वाराणसी कहा जाता है। १९९७  में इसे जिला बनाया गया। इससे पूर्व यह अल्मोड़ा की एक तहसील थी। इसका कुल क्षेत्रफल १६९६ वर्ग किमी है। यहाँ की मुख्या फसलें मंडुआ , बाज़रा , मक्का , गेहूँ , मसूर आदि हैं। 





१२ - चम्पावत - 

                             समुद्रतल से लगभग ५००० फुट की ऊँचाई पर स्थित ऐतिहासिक नगर चम्पावत ९५३ ईश्वी से १५६३ ईश्वी तक चंद वंशीय राजाओं की राजधानी रहा। १५ सितम्बर १९९७ को इसे एक जनपद का रूप दिया गया। चम्पावत का प्राचीन नाम कुमूँ है ,काली नदी  कारण इसे कुमूँ काली भी कहते हैं।  नाम चम्पावती (चम्पावती नदी के किनारे होने कारण ) है। 




१३ - ऊधम सिंह नगर  -

                                          ऊधम सिंह नगर जिला कुमाऊँ के सबसे दक्षिणी भाग में एक पतली पट्टी के रूप में विस्तारित है। इस जिले की पूर्व से पश्चिम की लम्बाई तो लगभग  १३० किमी है , परन्तु चौड़ाई ३० किमी से भी कम है। पहले यह नैनीताल जिले में था , १९९५ में इसे जिला बनाया गया। यह जिला तीन उपभागों से मिलकर बना है - रुद्रपुर , काशीपुर तथा खटीमा। इसकी पूर्व सीमा नेपाल से मिलती है। यह प्रदेश का एक प्रगतिशील जनपद है , यहाँ हिन्दू , मुस्लिम , सिख , इसाई , बंगाली , क़ुमाँऊनी , पंजाबी तथा पूर्वांचल के आलावा थारु एवं बोक्सा जनजाति के लोग एक साथ रहते हैं। 





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