Monday 12 October 2015

Haridwar

हरिद्वार -

                                हरिद्वार गढ़वाल क्षेत्र का अति विशिष्ट नगर है, जो कि शिवालिक श्रेणी के बिल्व व नील पर्वतों के मध्य गंगा के दाहिनी तट पर स्थित है। यहीं से गंगा मैदान में उतरती है। 

 



पुराणों तथा धार्मिक ग्रंथों में इसे गंगा द्वार , देवताओं का द्वार , तीर्थ स्थलों का प्रवेश द्वार , चारों धामों का द्वार ,स्वर्ग द्वार ,मायापुरी या मयक्षेत्र आदि नामों से अभिहित किया गया है।

राजा विक्रमादित्य ने भाई की याद में यहां गंगा पर पौड़ियों (सीढ़ियों) का निर्माण करवाया था, जिसे भर्तृहरि की पैड़ी कहा जाता था। कालांतर में यह हर की पैड़ी हो गया। 1399 में तैमूरलंग भी यहाँ आया था। उसका इतिहासकार सरुद्दीन ने हरिद्वार को कायोपिल या कपिला कहा है। जिसका अर्थ है पहाड़। 

रामानंद (1400 - १४७०) के आगमन के पश्चात रामावत संप्रदाय और वैष्णव लहर ने हरिद्वार को हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई। 

गोरखों के शासन काल में हरिद्वार दासों के बिक्री का केंद्र बन गया। अंग्रेजों ने हरिद्वार के महत्व को देखते हुए इसके विकास पर विशेष ध्यान दिया। महात्मा ग़ांधी ने 1915 और 1927 में हरिद्वार की यात्रा की थी।

 

 

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